सितारे जमीन पर मूवी रिव्यू: क्या आमिर खान की नई फिल्म दमदार कमबैक है या एक और फ्लॉप रीमेक? पढ़ें 8 पॉइंट्स में Honest Review और जानें देखना चाहिए या नहीं।
आमिर खान की नई फिल्म: क्या यह कमबैक है या एक और ‘लाल सिंह चड्ढा’?

लगभग हज़ार दिनों के बाद आमिर खान की एक नई फिल्म आ रही है, लेकिन क्या आपको भी इसकी हाइप कम लग रही है? अगर हां, तो धोखा खा गए! यह फिल्म अच्छी है या बुरी, यह जानने के लिए आपको यह आर्टिकल पूरा पढ़ना होगा। मैं आपको 8 पॉइंट्स में समझाऊंगी कि क्या इस फिल्म का टिकट बुक करना बेवकूफी होगी या यह एक शानदार अनुभव होगा।
कहानी: सीधी और दिल को छूने वाली
फिल्म की कहानी बेहद सरल है: एक कोच कुछ बच्चों को सिखाने जाता है, लेकिन बदले में ये बच्चे उसे ज़िंदगी की सही कोचिंग देते हैं। बस, इतनी सी है कहानी! बाकी का काम कॉमेडी, फिल्म का सब्जेक्ट और ठीक-ठाक म्यूजिक करेगा। लेकिन क्या इतने से आमिर खान का कमबैक हो पाएगा?
रीमेक, लेकिन ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसा नहीं!
आपका सबसे बड़ा डर मैं अभी खत्म कर देती हूं: हां, यह फिल्म दोबारा से एक रीमेक ज़रूर है, लेकिन ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसी दुर्घटना बिल्कुल नहीं है। फर्क ये है कि ‘लाल सिंह चड्ढा’ में आमिर खान एब्नॉर्मल बनने की एक्टिंग कर रहे थे, लेकिन इस बार उन्हें एक्टिंग की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। फिल्म के बच्चे असल में वो सब जीते हैं जो अब कैमरे पर दिखा रहे हैं। यह बात फिल्म को काफी हद तक विश्वसनीय बनाती है।
बच्चों की फिल्म नहीं, बड़ों के लिए ज़रूरी!
दूसरी सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि “यह बच्चों की फिल्म है, बच्चे देखने जाएंगे, हम क्यों पैसे बर्बाद करें?” यही गलती फिल्म में आमिर खान का कैरेक्टर भी करता है। फिर उसके साथ जो होता है, वह साबित कर देता है कि इस फिल्म की ज़रूरत बच्चों से ज़्यादा बड़ों को है। याद है ‘तारे ज़मीन पर’? क्या उसे सिर्फ बच्चों की फिल्म कहना सही होगा? बिलकुल नहीं!
प्रेडिक्टेबल, फिर भी इमोशनल
तीसरी बात, हां, फिल्म काफी प्रेडिक्टेबल होगी। हम सब जानते हैं कि आंखों में आंसू लाने के लिए ही ऐसा सिनेमा बनता है, जिसका एक फिक्स स्टाइल होता है। लेकिन क्या ‘ग़जनी’ में कल्पना का मर जाना और ‘थ्री इडियट्स’ में रैंचो का मिल जाना, अगर ये दोनों सीन्स दोबारा देखने को बोलूं तो क्या फिर से वही इमोशंस महसूस नहीं होंगे? ठीक वैसे ही इस कहानी में बहुत सारे पल हैं जो आपको पहले से पता होंगे, लेकिन फिर भी जब वो आएंगे तो आप खुद को इमोशनल होने से रोक नहीं पाओगे। मेरी शर्त लगी!
स्पोर्ट्स ड्रामा से बढ़कर!
चौथी बात, इस फिल्म को स्पोर्ट्स ड्रामा बोलना भी गलत होगा, क्योंकि बास्केटबॉल पर इस फिल्म का फोकस ही नहीं है। वो खिलाड़ी जो ये खेल खेल रहे हैं, वो फिल्म के असली हीरो हैं। मतलब, ‘चक दे इंडिया’ या ‘दंगल’ टाइप सिनेमा की उम्मीद लेकर मत चले जाना, वरना पैसा टोटली बर्बाद हो जाएगा। हां, फिल्म में हार-जीत ज़रूर होगी और वो सीन आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी करेगा।
बुद्धिमानी बनाने वाली फिल्म
पांचवा, दिमाग लगाने की ज़रूरत ही नहीं है। फिल्म इंटेलिजेंट लोगों के लिए नहीं है, बल्कि लोगों को इंटेलिजेंट बनाने के लिए है। इन दोनों में काफी अंतर होता है। किसी की ज़िंदगी की सबसे बड़ी ट्रेजेडी को आपके 2 घंटे की कॉमेडी में बदल देना और फिर आपको इस कॉमेडी के पीछे का असली सच बिना दिखाए महसूस होना… वैसे कॉमेडी सीन ज़्यादा नहीं हैं, लेकिन हां, पूरे ढाई घंटे चेहरे पर हंसी बनी रहेगी। यही इस फिल्म को ताकत देगी और पब्लिक खुद से जोड़ लेगी।
मास सिनेमा नहीं, जीवन का पाठ
छठी बात, गांठ बांध लो! ये ‘पठान’, ‘जवान’ या सलमान टाइप फिल्म नहीं है। मास सिनेमा, एक्शन, मारधाड़, नाच-गाना… ये सब इस फिल्म में नहीं मिलेगा। आमिर खान जैसा हर बार करते हैं, थिएटर बुलाकर लोगों को जीना सिखाते हैं, फिर से वही कोशिश होगी। लेकिन आपके ऊपर है, यह बोरिंग भी लग सकता है या फिर आपकी सोच भी बदल सकता है। यह फिल्म बिल्कुल नहीं देखनी चाहिए उस इंसान को जो कुछ अलग देखना चाहता है, नया, डिफरेंट, यूनिक सब्जेक्ट ढूंढ रहा है। आमिर वही पुरानी चीज़ें दिखा रहे हैं जिसने उन्हें आमिर खान बनाया है, और कोई ज़बरदस्ती नहीं है फिर से वो सब रिपीट पर देखने के लिए। लेकिन परिवार ज़रूर इंप्रेस होगा।
जेनेलिया और एक्स-फैक्टर

सातवां सवाल, जेनेलिया इस फिल्म में क्या कर रही हैं? उनका भी कहानी में बड़े अच्छे से इस्तेमाल हुआ है, क्योंकि दूसरों को सिखाने वाला कोच भी इंसान ही तो है। उसकी प्रॉब्लम्स नहीं होती क्या? फिल्म में इन दोनों के जो सीन्स हैं, वो एक तरीके से समझाते हैं कि प्रॉब्लम सामान्य लोगों में भी होती है, सिर्फ किसी का एब्नॉर्मल होना ही प्रॉब्लम नहीं होता।
और आठवीं चीज़ है इस फिल्म का सबसे बड़ा एक्स-फैक्टर: जितने भी एक्टर्स हैं इस फिल्म में, उन सबकी एक पास्ट स्टोरी है। वो चीज़ आपको बाकी मूवीज़ में कभी नहीं मिलेगी। खासकर एक कैरेक्टर है जिसको फिल्म में नहाने से डर लगता है। ठीक इंटरवल से पहले जिस तरह उसके डर को भगाया जाता है, आपका पैसा उसी एक सीन में पूरा वसूल हो जाएगा। स्क्रीन पर आमिर खान हैं, फिर भी नज़रें किसी और पर जाकर टिक जाएं, इस लेवल के इंटरेस्टिंग कैरेक्टर्स बना देना बहुत ज़रूरी था। यह टीम की फिल्म है, वन-मैन शो नहीं।
हमारा अंतिम फैसला और रेटिंग
सिर्फ एक एडवाइस दूंगी: इस फिल्म का नाम ‘तारे ज़मीन पर’ नहीं है, इसीलिए अगर सेम वैसा ही एक्सपीरियंस चाहिए तो पुरानी वाली देख लो। नई फिल्म सितारों के बारे में है, जैसे सितारे जलते-बुझते हैं, ठीक वैसे ही इस फिल्म से किसी के दिल का बल्ब जलेगा तो किसी का फ्यूज़ भी हो सकता है।
रेटिंग: 5 में से 3 स्टार्स
पॉज़िटिव पॉइंट्स:
- शुरू से आखिर तक एंटरटेनमेंट
- बच्चों की बैकस्टोरी का शानदार इस्तेमाल
- बिना बोले इमोशंस को महसूस कराना
- बच्चों का सॉलिड एक्टिंग परफॉर्मेंस
नेगेटिव पॉइंट्स:
- एक स्टार तो पूरा रीमेक फैक्टर को गया, क्योंकि जब फिल्म देखोगे तो आप भी सोचोगे कि यह कहानी कॉपी करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या हम खुद से ऐसा सिनेमा नहीं सोच सकते?
- एक छोटी सी शिकायत यह कि पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि आमिर खान की जगह कोई और एक्टर भी होता तो उतना फर्क नहीं पड़ता। मतलब, उनका स्क्रीन प्रेज़ेंस वैसा आया नहीं जैसा बाकी मूवीज़ में था।
फिल्म बुरी नहीं है, खराब बिल्कुल नहीं है, पूरे परिवार के साथ एंजॉय कर सकते हो। लेकिन हां, मास्टरपीस बोलना भी जल्दबाज़ी होगा, क्योंकि ऑलरेडी 2025 में इससे बेहतर चीज़ें आ चुकी हैं।
निर्देशक आर. एस. प्रसन्ना
लेखक दिव्य निधि शर्मा आधारित जेवियर फेसर द्वारा ‘चैंपियंस”
निर्माता
आमिर ख़ान
अपर्णा पुरोहित
अभिनेता
आमिर खान
जेनेलिया देशमुख
छायाकार जी. श्रीनिवास रेड्डी
संपादक चारू श्री रॉय
संगीतकार गाने:
शंकर-एहसान-लॉय
स्कोर:
राम सम्पत
निर्माण कंपनी: आमिर खान प्रोडक्सन्स
वितरक
पीवीआर पिक्चर्स (भारत)
एए फिल्म्स (विदेश)
प्रदर्शन तिथियाँ
20 जून 2025
लम्बाई
155 मिनट्स
देश: भारत
भाषा: हिंदी