आज हम बात करेंगे हिंदी फिल्म रेड टू की। रेड आई थी उसकी सीक्वल है ये। अजय देवगन स्टारर फिल्म है। कैसी है रेड टू? रेड 2 एंटरटेनिंग फिल्म है। कुल मिलाकर एक अच्छी फिल्म है। ज्यादातर जो हिस्सा इस फिल्म का है वो आपको संतुष्ट करता है। कोई आपको इससे शिकायत नहीं महसूस होती है। और सबसे अच्दी बात यह है कि आप इसके जो डायलॉग्स हैं और इसका जो ह्यूमर है ऊपर आप प्रतिक्रिया देते हो। लेकिन एक छोटा सा हिस्सा फिल्म को वो भी है, लेकिन वो इतना जरूरी हिस्सा है कि वहां पर फिल्म गलती करती है और वो आपको बहुत अकरता है।
रेड 2 की कहानी क्या है
फिल्म की कहानी 1989 से शुरू होती है। राजस्थान में खुलती है। वहां आप कलरफुल सिंगारे जैसे ऊंट देखते हो। दो रेतीले टीले हैं। उनके बीच में एक राजा का किला है। उसमें एक रेड पड़ रही है। ओपनिंग सीन होता है। इस रेड के सेंटर में आईआरएस का डिप्टी कमिशनर अमय पटनायक जिसको अजय देवगन ने प्ले किया है। अमय पटनायक की एंट्री होती है। अमय पटनायक और आप देखते हो और पहली रेड के मुकाबले और भी ज्यादा वो औसत इंडियन मेल लगने लगा है। और कुछ-कुछ उडि़या रूट्स ज्यादा उसके उभर के आने लगे। अगर ये मानना चाहें कि उनका उडि़या रूट है।
चेक्स की शर्टस वाइट ब्लू की रेंज में बाहें ऊपर की ओर तह की हुई कोहनी तक प्लीट वाली पेंट उनकी वो टिपिकल लेदर की चप्पलें और राजस्थान में रहते हुए और भी ज्यादा भुन सी गई त्वचा रूखे और सफेद हो चुके होठ लेकिन अब अमय है वो इन सब फिजिकल अपीयरेंसेस के हित भी काफी बदल चुका है।
अमय पर रिश्वत मांगने का इल्जाम है जो सरप्राइजिंग है। हमको दिखाया जाता है कि उसने 2 करोड़ की रिश्वत भी मांगी है और वह ईमानदारी की जिंदगी से परेशान हो चुका है, लेकिन हम अब भी इस तथ्य का बड़ा संदेह की दृष्टि देख सकते हैं और देखते है कि क्या यह सच बात है कि वो एक ईमानदार आदमी नहीं रहा है। और इस सच का पता सिर्फ या तो अमय का है या उस ऑपरेशन को लीड कर रहे उनके जूनियर ऑफिसर महंत को है।
अमेय का 74वां ट्रांसफर कर दिया जाता है इस घटना के बाद में और जिस जगह ट्रांसफर किया जाता है उस जगह का नाम होता है भोज। तो कार में पत्नी मालिनी जिसे वाणी कपूर ने प्ले किया और पापा के ट्रांसफर के चलते दोस्त नहीं बना पा रही बिटिया के साथ जा रहे है। नगर सीमा पर भोज के पहुंचते हैं और वहां पे गरीब जन पार्टी के बड़े से बैनर्स लगे हुए हैं। उनमें हाथ जोड़े एक आदमी खड़ा नजर आता है। सज्जन सा लगने वाला पुरुष है और बाद में पता चलता है उस पुरुष का नाम दादा भाई केंद्रीय मंत्री दादा मनोहर भाई इसको रितेश देशमुख ने प्ले किया है। आगे हमें और दादा भाई का रॉयल आपको देखने को मिलता है। क्यों देखने को मिलता है? कई सवाल होते है, कई जवाब मिलते है, कई छापे मिलते हैं और कई झंझावात हैं जो किरदारों की जिंदगियों में आते हैं। ये आगे की कथा है।
क्रिस नोलेलन की 2006 में फिल्म आई थी द प्रेस्टीज। दो जादूगरों की कहानी थाी और इसमें थी एक अवाक कर जाने वाली ट्रिक जिसे देखो तो भरोसा ना हो कि कोई जादूगर भला यह ट्रिक कैसे कर सकता है । बरसों तक लोग उसके बारे में सोचते रह जाते हैं। कोई इतना परफेक्ट इल्लुजन या भ्रम कैसे रच सकता है। कुछ ऐसा ही हमने देखा तमिल क्राइम थ्रिलर सीरीज सूडल द वोर्टेक्स में जिसका सीजन दो रिसेंटली आया था। उसमें एक बड़ा मशहूर एडवोकेट होता है। चेलप्पा उसकी मौत हो जाती है। उसके कॉटेज के दरवाजे अंदर से बंद होते है । हाथ में गन मिलती है।
सिर में गन शॉट मुंंड होता है। दीवार में खून पोता होता है। इशारा करता है कि ये कंफर्म है कि सुसाइड है। लेकिन असल में ये सुसाइड नहीं होता है। मर्डर हाेता है। लेकिन कोई नहीं जानता कि यह मर्डर आखिर कैसे मुमकिन है। क्योंकि आसपास की सिचुएशंस हैं वो अलाउ नहीं कर सकती कि मर्डर हो सकता है। ताे परफेक्ट इल्लुजन है। रेड 2 में भी डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता इसी परफेक्ट इल्लुजन को खेलते है। क्योंकि दर्शक को यह बहुत भाता है इस प्रकार का इल्लुजन। ये एक ऐसी पहेली है जिसका जवाब ठीक आपके सामने हैं।
लेकिन आपको खोजना है और आप खोजते हो आपको आनंद आता है। फिल्म में अमय और दादा भाई भी एक दूसरे को यही खोज कर दिखाने की चुनौती देते हैऔर वो चुनौती दर्शक की भी होती है। दादा भाई एक नाकाम छापेमारी के बाद अमय से कहता है कि चार चीजें आपकी नजर में आई लेकिन आपको कुछ नहीं मिला। अब पांचवी और सबसे बड़ी चीज आपकी आंख के सामने है और आप उसे ढूंढ नहीं पाओंगे। उसके बाद अमय एक सीन में उनसे दोबारा कहता है पलट के आज के बाद सब तुम्हारी नजरों के सामने होगा। पकड़ सकाे तो पकड़ लो।
रितेश शाह, राजकुमार गुप्ता, जयदीप यादव, करण व्यास की राइटिंग इस दावे को सरप्राइजिंगली खड़ा ऊताारकर दिखाती है। आपको हैरान करती है कि जो दावा किरदार के जरिए वो करते हैं उसको वाकई में पूरा करते हैं। दर्शक सेटिस्फाई होता है। एस्टोनिश्ड होता है। आश्चर्यजनक उसको लगता है। राइटिंग में कुछ बहुत प्यारे आनंदित करने वाले पल भी हमको देखने को मिलते है फिल्म में। जैसे एक सीन में हमें बेनामी संपत्तियोंकी जांच कर रहे होते है और एक गांव वाले से वो पूछते है कि राम छोटे आप ही हैं।